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बहुभागीय पुस्तकें >> राम कथा - साक्षात्कार राम कथा - साक्षात्कारनरेन्द्र कोहली
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राम कथा पर आधारित उपन्यास, चौथा सोपान
आठ
रावण ने अपने कक्ष में प्रवेश किया तो देखा, मंदोदरी वहां पहले से बैठी हुई थी। सामान्यतः जब रावण किसी यात्रा से लौटता था तो रथ के रुकते ही मंदोदरी उसका स्वागत, महल के मुख्य द्वार पर आरती के थाल के साथ किया करती थी। किंतु आज न तो किसी को यह ज्ञात था कि वह कहां गया है, न उसके लौटने का समय ही नियत था; इसलिए यदि महारानी द्वार पर अपने पति का स्वागत नहीं कर पायी, तो कोई बात नहीं। किंतु इस समय भी उसने स्वागत का कोई प्रयत्न नहीं किया। रावण को देखकर उसने न उल्लास किया, न आश्चर्य। वह उसी प्रकार निश्चल मुद्रा में बैठी रही, जैसे रावण सदा से महल में ही हो, बाहर कहीं गया ही न हो।
रावण ने ध्यान से देखा-मंदोदरी के चेहरे पर ऊपरी शांति के भीतर से आवेश का हल्का-सा आभास फूट रहा था।
"क्या बात है?" आज सम्राज्ञी कुछ असन्तुष्ट दीख रही हैं।"
"सम्राट् तो सन्तुष्ट हैं न!" मंदोदरी का स्वर शुष्क था, "सुना है, सम्राट् अपनी बहन के अपमान का प्रतिशोध लेने गए थे।"
"हां, गया था शूर्पणखा के अपमान का प्रतिशोध लेने।" रावण मंदोदरी का व्यवहार समझ नहीं पा रहा था।
"क्या शूर्पणखा की दुश्चरित्रता के लिए उसका प्रताड़न करने वाली का बध कर आए?" मंदोदरी का स्वर शुष्कता छोड़ वक्र हो उठा।
"मंदोदरी!" रावण का क्रोध संयत नहीं रह सका, "मेरी बहन को दुश्चरित्र कहने का साहस कर रहीं हो तुम!"
"सम्राट् को बुरा लगा।" मंदोदरी का स्वर अधिक वक्र तथा उपहासपूर्ण हो गया, "मुझे मालूम नहीं कि सम्राट् किसे दुश्चरित्र कहते हैं। शूर्पणखा का विवाह हमारे विवाह से भी पहले हुआ था। वय में वे मुझसे बड़ी नहीं तो छोटी भी नहीं हैं। मेरा इंद्रजीत जैसा पुत्र तथा सुलोचना जैसी पुत्रवधू है। शूर्पणखा के पति का वध न हुआ होता, अथवा उसने उन्मुक्त काम-विहार न कर, पुनर्विवाह कर लिया होता तो आज उसकी संतानें वय में उन वनवासियों से बड़ी होती, जिनका उसने कामाह्वान किया था। ठीक है कि किसी संतान को जन्म न देने के कारण वे अपने वय से कम दीखती हैं; किंतु अपने पुत्र-योग्य वय के पुरुषों को रति-निमंत्रण देना, सच्चरित्रता का आदर्श तो नहीं?"
"मंदोदरी! तुम जानती हो कि राक्षसों ने सच्चरित्रता के इन आदर्शों को कभी मान्यता नहीं दी। शूर्पणखा स्वतंत्र है। वह किसी से भी काम-प्रस्ताव कर सकती है।"
"तो वे वनवासी भी स्वतंत्र थे। उन्होंने काम-प्रस्ताव ठुकरा दिया। शूर्पणखा को क्या अधिकार था कि वह उनके साथ की स्त्री के प्राण लेने का प्रयत्न करती?" मंदोदरी ने क्षण-भर रुककर जैसे शक्ति एकत्रित की, "सम्राट् अपने मुख से कह दें कि यह सत्य नहीं है कि सीता जैसी रूपवती युवती देखकर शूर्पणखा अपने रूप और यौवन की विदाई की अनुभूति से पीड़ित हो उठी थी। वह ईर्ष्या से जल उठी थी, इसलिए उसने सीता पर आक्रमण किया था।...उसका वश चले तो वह प्रत्येक सुन्दरी युवती के टुकड़े-टुकड़े कर दे। उसे स्वयं मेरी पुत्र-वधुएं एक आंख नहीं भातीं।"
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